‘काया’ में समलैंगिकता विमर्श के केन्द्र में है- सियाराम शर्मा
रायपुर। जन संस्कृति मंच रायपुर द्वारा स्थानीय वृंदावन हॉल में 17 मई को एक भव्य और भव्य और सुरुचि पूर्ण आयोजन में जसम की सदस्य और देश की शीर्ष स्त्री कथाकारों में शुमार जया जादवानी के हाल में प्रकाशित उपन्यास काया का लोकार्पण किया गया। यह उपन्यास अभी कुछ ही दिनों पहले भोपाल के प्रतिष्ठित मंजुल प्रकाशन से छापकर आया है।
कार्यक्रम की शुरुआत में जसम के लोकप्रिय गायकों वसु गंधर्व और निवेदिता शंकर ने जसम की परंपरा के अनुरूप चुनिंदा कवियों की रचनाओं का गायन कर माहौल संगीतमय कर दिया। फिर अतिथियों द्वारा उपन्यास काया को विमोचित किया गया।
विमोचन के पश्चात लेखिका जया जादवानी ने उपन्यास की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब भी वे किसी की संवेदना को घायल होते देखती हैं तो उसके पक्ष में कलम उठाने को मजबूर हो जाती हैं। हमारे समय में ऐसा वर्ग जिसकी संवेदना सबसे अधिक घायल हो रही है और जो सामाजिक उपेक्षा का सबसे बड़ा शिकार है वह तृतीय जेंडर ही है, इसलिए उन्होंने उसके विषय में लिखने का मन बनाया था। उन्होंने पाठकों से अपील की कि वे काया उपन्यास को इस व्यापक संवेदनशीलता के साथ पढ़ें, कि हर व्यक्ति का जीवन उसका अपना होता है और जीवनयापन के उसके अधिकार में हस्तक्षेप करने का हक किसी को नहीं, चाहे वह उसका अपना परिवार या अपना समाज ही क्यों ना हो।
समीक्षा सत्र की प्रथम वक्ता विद्या राजपूत ने जया जादवानी के लेखन में एलजीबीटी थीम की विशिष्टता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि तृतीय जेंडर की संवेदना को जया जादवानी ने जिस प्रकार अपने उपन्यास में अभिव्यक्त किया है, ऐसा करने वाली वे हिंदी की अकेली लेखिका हैं। रवि अमरानी ने कहा कि इस विषय पर लिखना निस्संदेह एक साहसिक कार्य है। ‘काया’ की लेखिका ने उस क्षेत्र में प्रवेश किया है जहाँ सामाजिक वर्जना,संवेदना, जिज्ञासा, पीड़ा और सत्य — सब एक साथ चलते हैं।
वरिष्ठ कथाकार आनंद बहादुर ने जया जादवानी की अनेक कहानियों और उपन्यासें के उदाहरण के साथ उनकी लेखन-कला और रचना-प्रक्रिया का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि जया जादवानी ने उपन्यास, कहानी, कविता लेख इत्यादि अनेक साहित्य विधाओं में विपुल लेखन किया है। जया जीवन के हर आयाम में संवेदनशीलता की हिमायती हैं और स्त्री जीवन की हर उस बात जो उसकी संवेदना को घायल करती है, जया ने विषयवस्तु बनाया है।
अध्यक्ष की आसंदी से बोलते हुए वरिष्ठ आलोचक सियाराम शर्मा ने बताया कि ईसा से छः वर्ष पूर्व यूनानी कवित्री सप्फ़ो के समय से समलैंगिकता विषय पर लेखकों ने लिखा है, मगर जया जादवानी ने इस विषय को जिस तरह से अपने विमर्श के केंद्र में लाया है और जिस संवेदना के इसे प्रस्तुत किया है, ऐसा पहले नहीं हो पाया था। उपन्यास ‘काया’ पितृसत्तात्मक व्यवस्था का विरोध तो करता ही है, इसमें परिवार नामक इकाई की तानाशाही के मुखर प्रतिरोध का स्वर भी है। यह आज के आधुनिक जीवन, खासकर आईटी उद्योग में बड़े-बड़े पदों पर काम करने वाले युवाओं के जीवन के खोखलेपन और मूल्यह्रास का दस्तावेज भी है।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने, तथा जसम की रूपेंद्र तिवारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस अवसर पर डाॅ. रेणु माहेश्वरी, मधु वर्मा, नीलिमा मिश्रा, सुनीता शुक्ला, वसुधा सुमन, दिलशाद सैफ़ी, पूनम संजू, अर्चना जैन, छाया सिंह, पप्पी देवराज, सुमेधा, श्रद्धा थवाइत, संध्या गौर, गीता शर्मा, डाॅ सोनाली देव, सरोज साहू, रज़ा हैदरी, राजेंद्र चाण्डक, प्रफुल्ल ठाकुर, समीर दीवान, प्रदीप गुप्ता, गौरव गिरिजा शुक्ल, अजय शुक्ला, मीसम हैदरी, इंद्र कुमार राठौर, सुरेश वाहने, सुखनवर हुसैन, मीर अली मीर, संजीव ख़ुदशाह, मुहम्मद मुसय्यब, जावेद नदीम नागपुरी, नरोत्तम शर्मा, मृगेंन्द्र सिंह, संजय श्याम, डी. पी. अहिरवार, राहुल, नंद कुमार कंसारी, डाॅ. एस. एस. धुर्वे, डाॅ. अश्विनी कुमार चतुर्वेदी, हरीश कोटक, सी. आर. साहू, प्रेम सोनी, नरोत्तम यादव आदि नगर के साहित्य-प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।